लेखनी कहानी -01-Sep-2022 सौंदर्या का अवतरण का चौथा भाग भाग 5, भाग-6 भाग 7 रक्षा का भारत आना ८भाग २१

21- महामृत्युंजय जाप का आखिरी दिन

दीपक ने कहा- मैं अपने ससुर जी से मिलने इस अस्पताल में आया था। यह अस्पताल मेरे ससुर जी का ही है, लेकिन उन तक पहुंचने से पहले मेरी मुलाकात तुमसे हो गई। और मैं तब से तुम्हारे साथ ही हूं ।अब तुम चिंता मत करो। हम से जो भी मदद हो सकेगी। हम जरूर करेंगे। हम तुम्हारे कुछ काम आ सके, तो यह हमारा सौभाग्य होगा।अब तुम बिल्कुल परेशान मत होना। मैं तुम्हारी मदद के लिए तैयार हूं। मैं तुम्हारी मदद जरूर करूंगा। दीपक की यह बात सुनकर श्रवन बहुत खुश हुआ। और श्रेया  को रक्त देने के लिए श्रवण ने दीपक को बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं दी। धन्यवाद बोला।

उसके बाद दीपक अपने ससुर जी से मिलने उनके केबिन में चला गया। ससुर जी ने दीपक का स्वागत किया। उसके बाद वह बैठकर अपने ससुर जी से बात कर रहा था। बात करते-करते श्रवन और श्रेया का जिक्र छिड़ गया। तब दीपक ने बताया कि श्रवण मेरा मित्र हैं। और मुझे तो पता ही नहीं था कि उसकी पत्नी की हालत इतनी खराब है। यह तो...... अचानक मेरी मुलाकात उससे हो गई । वह तो मुझे पहचान भी नहीं पाया था। मैंने ही उसे पहचाना और उससे बात की। तब जाकर पता चला कि उसकी पत्नी की हालत बहुत खराब है।  पापा जी थोड़ा ध्यान रखिएगा।  दीपक के ससुर जी ने कहा-वह आपका फ्रेंड है, यह तो बहुत अच्छी बात है। लेकिन हमारे लिए तो सभी मरीज बहुत ही खास होते हैं। उनकी जान बचाना हमारा फर्ज होता है। हम पूरी कोशिश कर रहे हैं। बहुत जल्दी श्रेया को होश आ जाएगा और वह ठीक होकर खुशी-खुशी अपने घर जाएगी। दीपक ने ससुर जी को श्रेया के लिए धन्यवाद बोला और ससुर जी से आज्ञा मांगी। दीपक घर जाने के लिए निकल रहा था कि फिर से श्रवन से मुलाकात हो गई। श्रवन ने कहा- घर जा रहे हो? दीपक ने कहा- हां अब मैं घर जा रहा हूं।कल मैं अपनी पत्नी के साथ आऊंगा। श्रवन ने धन्यवाद कह, शुभरात्रि बोल कर दीपक को विदा किया और श्रेया के पास आ गया।

इतने में नर्स ने आकर श्रेया का बीपी वगैरह चेक किया और रात की दवा इंजेक्शन देकर श्रवन को कहा- रात में श्रेया का ध्यान रखना है। और जरा सा कुछ भी अगर हो इसको होश आता दिखा तो तुरंत हमें इन्फॉर्म करना। श्रवण ने हां में सर हिला दिया। नर्स के जाने के बाद मां ने श्रवन से खाना खाने के लिए कहा- मां ने श्रवन से कहा- कि हाथ पैर धो कर आओ और खाना खा लो। खाना खा कर फिर बारी बारी से हम लोग थोड़ा थोड़ा सो लेंगे। एक लोग सोएंगे तो एक लोग श्रेया का ध्यान रखेंगे। फिर दूसरा जागेगा पहले जो जग रहा था वह सो जाएगा। इस तरह दोनों को बारी-बारी से आराम मिल जाएगा। और श्रेया की देखभाल भी अच्छी तरह से हो पाएगी। श्रवन और मां ने साथ बैठकर खाना खाया। खाना खाने के बाद श्रवन श्रेया के पास चला गया। मां ने बाहर ही बिस्तर लगाया और वह वहां लेट गई। मां के पास श्रेया की छोटी बच्ची भी थी। मां को उसका भी ध्यान रखना होता था। बच्ची बहुत छोटी थी, तो रात में कई बार जगती,परेशान करती। अपनी पूरी कोशिश करती। रात भर परेशान रहने के बाद मां की थोड़ी आंख लग गई थी। कि चिड़ियों के चाहने की आवाज आना शुरू हुई।

चिड़ियों की चहचहाहट और पक्षियों का कलरव सुनकर मां की आंख खुली। तो सूर्य देवता की किरणें अपना नूर बरसा कर एक नई सुबह की ओर इशारा कर रही थी।प्रातः काल का दृश्य देखते ही बनता था। अस्पताल के बाहर लॉन में घास पर ओस की बूंदें मोती जैसे चमचमा रही थी। श्रवण और उसकी मां के मन में वह ओस की बूंदें देख कर मन में उत्साह भर रहा था। चिड़ियों की  चहचहाहट से बाहर  का वातावरण संगीत में गीत से सुसज्जित सा हो रहा था। इतने में श्रेया और श्रवन की बेटी रोने लगी।अब श्रवन की मां उठना ही पड़ा। उन्होंने उसे गोद में उठाया और उसके कपड़े बदले । उसके बाद उसके दूध की व्यवस्था की, और उसको दूध दिलाया। तब जाकर वह शांत हुई। इतने में भी श्रवन रूम से बाहर आया। अब श्रवण ने मां को अंदर जाने के लिए कहा....….

और खुद ...... अपनी बेटी के साथ खेलने लगा था।

वह थोड़ी देर आराम करना चाहता था।क्योंकि वह पूरी रात जाग चुका था।  इसलिए मां कमरे से बाहर आई और वह श्रेया की बेटी को गोद में  लेकर फिर चली गई। और श्रवन को आराम करने को कहा। श्रवन आराम करने को लेट गया और कुछ ही देर में उसको नींद आ गई।

अब सुबह हो चुकी थी। और घर पर पूजा का सातवां दिन था। घर में पूजा चल रही थी ।आज पूरा का आखिरी दिन था। विधि विधान से पूजा समापन की ओर बढ़ रही थी और सभी के मन में एक उम्मीद बंधी हुई थी। कि शायद आज श्रेया को होश आ जाए। घर पर पांचों पडिट मंत्रोंपचार करते हुए विधिवत पूजा का विधान चला रहे थे। मंत्रोंपचार समाप्ति की ओर बढ़ रहा था। दोपहर हुई पूजा मंत्रोपचार समाप्त हुआ और उसके बाद पंडित जी ने हवन करना शुरू किया। हवन पूरा होते-होते शाम हो चली थी। आरती करके पंडित जी ने सभी को मौली बांधकर प्रसाद दिया, और एक मौली धागा अभिमंत्रित करके श्रेया के लिए पंडित जी ने रक्षा को दिया। रक्षा ने उन सभी ब्राह्मणों को दक्षिणा देकर आशीर्वाद लेकर विदा किया। जाते-जाते ब्राह्मणों ने श्रेया के लिए बहुत सारी दुआएं दीं, और खुशी खुशी वह सब अपने घर चले गए। इधर रक्षा ने अस्पताल जाने की तैयारी की‌ पंडित जी का दिया हुआ मौली अभिमंत्रित धागा वह बहुत जल्द श्रेया के हाथ में बांधना चाहती थी। जिससे कि श्रेया पर उस पूजा का असर हो और भगवान उसकी रक्षा करें और उसको होश आ जाए।

रक्षा ने घर का सामान समेटा और प्रसाद लेकर अस्पताल जाने की तैयारी करने लगी। उसने पिताजी को बताया। कि वह अस्पताल जा रही है। पिताजी ने कहा- ठीक है, जाओ भगवान करे तुम !

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8 Comments

Seema Priyadarshini sahay

15-Sep-2022 05:26 PM

बहुत खूब

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Kaushalya Rani

14-Sep-2022 08:54 PM

Nice

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Achha likha hai 💐

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